Saturday, 14 January 2017

16 DEC-13 JAN 2017 PAUSH MAAS

पौष मास आरंभ, ये महीना क्‍यों है खास इसमें क्‍या करें क्‍या ना करें

Publish Date:Wed, 16 Dec 2015 03:23 PM (IST) | Updated Date:Thu, 17 Dec 2015 10:53 AM (IST)
पौष मास आरंभ, ये महीना क्‍यों है खास इसमें क्‍या करें क्‍या ना करें
पौष मास के रविवार का शास्त्रों में अत्यधिक महत्व बताया गया है। सूर्य प्रतिकूल हो तो हर कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में सूर्य यंत्र की प्रतिष्ठा कर धारण करने से या पूजन
पौष मास का शास्त्रों में अत्यधिक महत्व बताया गया है। सूर्य प्रतिकूल हो तो हर कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में सूर्य यंत्र की प्रतिष्ठा कर धारण करने से या पूजन करने से सूर्य का शीघ्र ही सकारात्मक फल प्राप्त होने लगता है। भारतीय पंचांग पद्धति में प्रतिवर्ष सौर पौष मास को खर मास कहते हैं। इसे मलमास काला महीना भी कहा जाता है। इस महीने का आरंभ सामान्यत: 16 दिसम्बर से होता है और ठीक मकर संक्रांति को खरमास की समाप्ति होती है। खर मास के दौरान हिन्दू जगत में कोई भी धार्मिक कृत्य और शुभमांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इसके अलावा यह महीना अनेक प्रकार के घरेलू और पारम्परिक शुभकार्यों की चर्चाओं के लिए भी वर्जित है।
बंद होंगे सभी शुभ कार्य
इस वर्ष खरमास 16 दिसम्बर 2015 से आरम्भ हो गाया है और 14 जनवरी 2016 को मल मास यानी खर मास की समाप्ति होगी। खरमास में सभी प्रकार के हवन, विवाह चर्चा, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, द्विरागमन, यज्ञोपवीत, विवाह या अन्य हवन कर्मकांड आदि तक का निषेध है। देशाचार के अनुसार नवविवाहिता कन्या भी खर मास के अन्दर पति के साथ संसर्ग नहीं कर सकती है और उसे इस पूरे महीने के दौरान अपने मायके में आकर रहना पड़ता है।
खर मास में मृत्यु होने पर मिलता है नर्क
सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही खर मास में किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नर्क का भागी होता है। अर्थात चाहे व्यक्ति अल्पायु हो या दीर्घायु अगर वह पौष के अन्तर्गत खर मास यानी मल मास की अवधि में अपने प्राण त्याग रहा है तो निश्चित रूप से उसका इहलोक और परलोक नर्क के द्वार की तरफ खुलता है। इस बात की पुष्टि महाभारत में होती है जब खर मास के अन्दर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से वेध दिया था। सैकड़ों बाणों से घायल हो जाने के बावजूद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण यही था कि अगर वह इस खर मास में प्राण त्याग करते हैं तो उनका अगला जन्म नर्क की ओर जाएगा।
इसी कारण उन्होंने अर्जुन से पुन: एक ऐसा तीर चलाने के लिए कहा जो उनके सिर पर विद्ध होकर तकिए का काम करे। इस प्रकार से भीष्म पितामह पूरे खर मास के अन्दर अद्र्ध मृत अवस्था में बाणों की शैया पर लेटे रहे और जब सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। इसलिए कहा गया है कि माघ मास की देह त्याग से व्यक्ति सीधा स्वर्ग का भागी होता है।
खरमास के पीछे हैं यह किंवदंती
खर मास को खर मास क्यों कहा जाता है यह भी एक पौराणिक किंवदंती है। खर गधे को कहते हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने साथ घोड़ों के रथ में बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करता है। और परिक्रमा के दौरान कहीं भी सूर्य को एक क्षण भी रुकने की इजाजत नहीं है। लेकिन सूर्य के सातों घोड़े सारे साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने लगे। उनकी इस दयनीय स्थिति से निपटने के लिए सूर्य एक तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने हेतु रुकने लगे। लेकिन तभी उन्हें यह प्रतिज्ञा याद आई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन यात्रा को विराम नहीं देना है, नहीं तो सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा। सूर्य भगवान ने चारों ओर देखा तत्काल ही सूर्य भगवान, पानी के कुंड के आगे खड़े दो गधों को अपने रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए।
अब स्थिति ये रही कि गधे यानी खर अपनी मन्द गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमजोर होकर धरती पर प्रकट हुआ। शायद यही कारण है कि पूरे पौष मास के अन्तर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभार ही उनकी तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं।
नहीं बजेगी शहनाई
16 दिसंबर से पूरे 30 दिन के लिए शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगी। ऐसा धनु की सूर्य के साथ संक्राति होने से बनने वाले खरमास के प्रारंभ होने के कारण होगा। इसकी वजह से शादी समारोह सहित अन्य शुभ कार्य प्रतिबंधित हो जाएंगे। खरमास के समय पृथ्वी से सूर्य की दूरी अधिक होती है। मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी 16 दिसंबर को दोपहर 2:40 बजे से मलमास (खरमास) शुरू हो गया है। यह 14 जनवरी 2016 पौष शुक्ल पक्ष पंचमी गुरुवार मध्यरात्रि 1:25 बजे तक रहेगा। 15 जनवरी से शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी हट जाएगा और यह कार्य पुन: प्रारंभ हो जाएंगे।
ये कार्य नहीं होंगे
-शादी समारोह, ग्रह प्रवेश, व्यापार महूर्त, देव पूजन, मुडंन संस्कार, जनेऊ संस्कार आदि।
इसलिए कहते हैं खरमास
वर्षभर में दो बार खरमास (मलमास) आता है। जब सूर्य गुरु की राशि धनु या मीन में होता है। खरमास के समय पृथ्वी से सूर्य की दूरी अधिक होती है। इस समय सूर्य का रथ घोड़े के स्थान पर गधे का हो जाता है। इन गधों का नाम ही खर है। इसलिए इसे खरमास (मलमास) कहा जाता है। जब सूर्य वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करता है। इस प्रवेश क्रिया को धनु की संक्रांति कहा जाता है। साथ ही इसे मलमास या खरमास भी कहा जाता है।
मान्यता है कि
इस मास में हेमंत ऋतु होने से ठंड अधिक होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मास में भग नाम सूर्य की उपासना करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। यही कारण है कि पौष मास का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अध्र्य देने तथा उसके निमित्त व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है। आदित्य पुराण के अनुसार पौष माह के हर रविवार को तांबे के बर्तन में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य को अध्र्य देना चाहिए तथा विष्णवे नम: मंत्र का जप करना चाहिए। इस मास के प्रति रविवार को व्रत रखकर सूर्य को तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है।
ये भी होगा
16 दिसंबर: सूर्य वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करेगा। यह दोपहर 2:40 बजे धनु में पहुंचेगा। 24 दिसंबर: मंगल कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में शाम 5:10 बजे प्रवेश करेगा। 25 दिसंबर : शुक्र तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में शाम 5:34 बजे प्रवेश करेगा। 26 दिसंबर : बुध धनु राशि से निकलकर मकर राशि में रात 11:29 बजे प्रवेश करेगा।
बंद होंगे आदिबदरी धाम के भी कपाट
आदिबदरीनाथ धाम के कपाट बुधवार को एक माह के लिए बंद हो गए । पौष माह की संक्रांति पर शाम सात बजे श्रद्धालुओं को भगवान आदिबदरीनाथ के निर्वाण दर्शन कराए जाएंगे। फिर एक माह बाद माघ माह की संक्रांति के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए आदिबदरीनाथ मंदिर के कपाट खोल दिए जाएंगे। इस दौरान यहां बदरीनाथ की तर्ज पर वेद और ऋचाओं का पाठ होगा। 14 मंदिर समूहों के इस धाम में भगवान आदिबदरीनाथ (विष्णु) वरद मुद्रा में है। वर्ष भर में मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं को दर्शनों के लिए खुले रहते हैं। पंच बदरियों में आदिबदरी धाम ऐसा हैं जहां मंदिर के कपाट सबसे अंत में बंद होते हैं और महज एक माह बाद सबसे पहले खुलते हैं। इस मंदिर समूह में हर वर्ष हजारों की संख्या देशी-विदेशी श्रद्धालु आते हैं।
ये मंदिर हैं धाम में
आदिबदरी धाम 14 मंदिर समूहों का धाम हैं, जिनमें गरुड़ भगवान, हनुमान, जानकी, शिव, राम लक्ष्मण सीता, महिषासुर मर्दिनी, अन्नपूर्णा, विष्णु नारायण, चक्रवाहन, गणेश मंदिर आदि प्रमुख हैं।
मोबाइल पर भी अ
- See more at: http://www.jagran.com/spiritual/puja-path-paush-mass-start-what-to-do-in-this-particular-month-is-why-the-13308568.html#sthash.13BkH5us.dpuf
About 568 results (0.42 seconds) 
Tip: Search for English results only. You can specify your search language in Preferences
Stay up to date on results for Paush maas.
Create alert
About 69,700 results (0.34 seconds) 
Borivali West, Mumbai, Maharashtra - From your Internet address - Use precise location
 - Learn more   






No comments:

Post a Comment